वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ के अवसर पर आज जिला चिकित्सालय के जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
दैनिक आगाज इंडिया 2 अप्रैल 2025 गुना , अर्ली इंटरवेंशनिस्ट कम स्पेशल एजुकेटर जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र गुना श्रीमती प्रीति श्रीवास्तव ने वर्चुअल ऑटिज्म के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जो अक्सर 02 साल से कम उम्र के बच्चों में आ जाती है। जिससे बच्चा अपना अधिकांश समय स्क्रीन के साथ बिताना शुरू कर देता है। जैसे ही वह ज्यादा समय तक टीवी, मोबाइल या लैपटॉप देखने लगता है तो बच्चे की कम्युनिकेशन और बिहेवियर पैटर्न में कुछ बदलाव आने लगते हैं।
जिनमें मुख्य रूप से इनेबिलिटी तो अटेंशन – यानि बच्चा ध्यान नहीं दे रहा है, पेरेंट्स आवाज भी दे रहे हैं तो बच्चा उनकी तरफ देख नहीं रहा है। इस कंडीशन में अभिभावकों को भ्रम होता है कि कहीं उनके बच्चे को सुनने की समस्या तो नहीं हो रही है। लेक ऑफ इंटरेस्ट इन प्ले एक्टिविटीज – यानि बच्चे को खेलने में कोई रुचि नहीं होती और न ही वह यह समझ पाता है कि कौन से खिलौने को कैसे खेलना है। लेक ऑफ सोशल इंटरेक्शन – इस स्थिति में बच्चा अपने में ही व्यस्त रहता है। उसे अपने आसपास के लोगों या उसकी उम्र के बच्चों से कोई लेना देना नहीं होता। इसके साथ ही मूड स्विंग, जिद्दीपन, चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी, समझ में कमी के साथ-साथ उनकी ज्ञानेंद्रियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।
वर्चुअल ऑटिज्म को कैसे ठीक करें
अर्ली इंटरवेंशनिस्ट कम स्पेशल एजुकेटर जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र गुना श्रीमती प्रीति श्रीवास्तव ने बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म को ठीक करने के लिये हमें स्क्रीन टाइम धीरे-धीरे कम करके जीरो कर देना है। 02 साल तक बच्चों को किसी भी प्रकार का स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। बच्चों को सभी सेंस ऑर्गन से संबंधित एक्टिविटीज कराएं। उन्हें पार्क लेकर जाएं, उनकी सेंस ऑर्गन्स को उपयोग करने का मौका दें। हफ्ते में कम से कम एक दिन उन्हें कहीं घूमने ले जाएं और वहां की चीजों के बारे में बताएं। बच्चों के साथ समय बिताएं, उनके साथ खेलें। रात को सोते समय कहानी सुनाएं। अगर हम अपने बच्चों को मोबाइल देने के स्थान पर यह सभी प्रयोग करते हैं तो उनमें कुछ ही दिनों में फर्क देखा जा सकता है।