150 वर्ष बाद भारतीय संस्कृति के अनुरुप शिक्षा नीति तैयार की गई है। इस नीति में शिक्षा के अलग-अलग स्तरों पर सभी विषयों में भारतीय ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति एवं मूल्यों का समावेश किया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित शिक्षा व्यक्तित्व, समाज एवं राष्ट्र विकास को प्रेरित करती है। यह बात शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल भाई कोठारी ने कही। वे भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास इंदौर महानगर के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। डीएवीवी के स्कूल ऑफ कंप्यूटर साइंस विभाग के रमानी हॉल में यह संगोष्ठी आयोजित की गई। इसमें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव और भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ उच्च शिक्षा विभाग मध्य प्रदेश शासन के उपाध्यक्ष डॉ. अतुल भाई कोठारी मुख्य वक्ता थे। अपने संबोधन में डॉ. अतुल भाई कोठारी ने कहा कि 150 वर्ष बाद भारतीय संस्कृति के अनुरुप शिक्षा नीति तैयार की गई है। भारत की स्वतंत्रता के बाद यह तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पहले 1968 और 1986 में लाई गई दोनों ही शिक्षा नीति भारतीय समग्रता के भाव से दूर थी। साथ ही इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति एवं मूल्यों का समावेश नहीं था। नई नीति में शिक्षा के अलग-अलग स्तरों पर सभी विषयों में भारतीय ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति एवं मूल्यों का समावेश है।
कार्यक्रम में मौजूद शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास महिला कार्य की राष्ट्रीय संयोजिका शोभा पैठणकर ने कार्यक्रम को लेकर कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा ऋषि मुनियों द्वारा किए गए प्रयोगिक अनुभवों पर आधारित है और वैज्ञानिक प्रमाणिकता लिए हुए है।
इस संगोष्ठी में डीएवीवी की कुलगुरु प्रो. रेणु जैन, रजिस्ट्रार अजय वर्मा, डीएवीवी के असिस्टेंट रजिस्ट्रार के अलावा विभिन्न विभागों के एचओडी, कई फैकल्टी और स्टूडेंट्स मौजूद रहे।