पत्रकार और चित्रकार से अधिक कठिन है कार्टूनिस्ट बनना
कार्टून ब्लैक एंड व्हाइट की तरह होते हैं, जबकि खबरों का कलर ग्रे होता है
शान ठाकुर, संवाददाता
इंदौर। स्टेट प्रेस क्लब मध्यप्रदेश द्वारा जाल सभागृह में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के दूसरे दिन भी विभिन्न मुद्दों पर पत्रकारों और कार्टूनिस्टों ने बेबाकी के साथ अपनी बात कही। कार्यक्रम का शुभारंभ स्टेट प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी, घनश्याम देशमुख, त्रयम्बक शर्मा, नीलेश खरे, मंजुल आदि ने दीप प्रज्वलित कर किया।
कार्यक्रम में विशेष रूप से लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने भी शिरकत की। पहले सत्र में “करें कार्टून की बात हंसी गुदगुदी के साथ” विषय पर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेश से आये कार्टूनिस्टों ने खुलकर बात कही।
विषय की भूमिका में स्टेट प्रेस क्लब मध्यप्रदेश से जुड़ीं टीवी प्रोड्यूसर रचना जौहरी ने कहा कि आज हम सब हंसना भूल गए है और हँसने के लिए किसी टीवी सीरियल का इंतजार करते है। कार्टून को देखकर हमें हंसी भी आती है और कभी कभी व्यवस्था के खिलाफ हम आक्रोशित भी होते हैं। एक कार्टून बहुत कुछ अभिव्यक्त करता है। लिहाज़ा अखबार में कार्टून का होना बेहद जरूरी है।
महाराष्ट्र के व्यंग्य चित्रकार और पत्रकार नीलेश खरे ने कहा कि राजनीति में आज जितनी अच्छाई बची है, उतने ही अखबारो में कार्टूनिस्ट बचे है। एक चित्रकार और पत्रकार से अधिक कठिन है कार्टूनिस्ट बनना। एक संपादक किसी भी खबर या लेख को आसानी से संपादित कर सकता है, लेकिन एक कार्टून की रेखाओ को कम ज्यादा करना संपादक के लिए बेहद कठिन होता है। इसलिए वह कार्टून को एडिट करने की जोखिम नहीं उठाता है। कार्टून बनाना कभी भी आसान नही रहा। एक कार्टून को बनाने के लिए कार्टूनिस्ट को 6 से 7 घंटे तक पढ़ना होता है, तब जाकर वह एक अच्छा कार्टून बना पाता है। खरे ने आगे कहा कि एक संपादक को कार्टून की समझ होना जरूरी है। कभी कभी कार्टून की वजह से उसे अखबार के मालिक या पाठकों की नाराज़गी भी झेलना पड़ती है। कार्टूनिस्ट को प्राय धार्मिक चित्रो से बचना चाहिए। जब पाठकों को लगे कि अखबारों मे कार्टून अधिक छप रहे हैं तो समझ लेना चाहिए कि पत्रकारिता में आजादी अधिक आ गई है।
वरिष्ठ कार्टूनिस्ट घनश्याम देशमुख ने कहा कि एक चित्रकार एक बेहतर कार्टूनिस्ट बन सकता है। क्योकि वह रेखाओ की कीमत को जानता है। कई मर्तबा एक अखबार में एक ही तरह के कार्टून छपते हैं। क्योंकि उन अखबारों के मालिक किसी विशेष राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं । यह स्थिति आज भी बनी हुई है। एक कार्टूनिस्ट अधिक स्वाभिमानी होता है और वह जनता की आवाज़ बनकर कार्टून बनाता है। इसलिए ऐसे कार्टूनिस्ट एक अखबार में अधिक दिन तक अपनी सेवाएं नहीं दे पाते हैं।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कार्टूनिस्ट त्रयम्बक शर्मा ने कहा कि कार्टूनिस्ट बोलता बहुत कम है, लेकिन उसके कार्टून में मुखरता होती है। बाला साहब ठाकरे एक अच्छे कार्टूनिस्ट रहे, लेकिन जब उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो वे एक अच्छे राजनेता सिद्ध हुए। राजनीतिक पार्टी को चलाना आसान है लेकिन कार्टून की पत्रिका को चलाना बड़ा मुश्किल है। एक तरफ कार्टूनिस्ट को लोकतंत्र का बड़ा प्रहरी कहा जाता है, जबकि दूसरी तरफ कार्टूनिस्ट से समाज यही पूछता है कि कार्टून बनाने के अलावा और क्या करते हो। कार्टूनिस्ट बड़ा कंजूस होता है। वह कम रेखाओं में अपनी बात कहता है। भारत मे कार्टूनिस्ट विवेकशील होते है। इसलिए वे किसी बड़ी सेलिब्रिटी का भद्दा या बेहूदा कार्टून नहीं बनाते हैं। जबकिविदेशों में ऐसे बेहूदा कार्टून बनाना आसान है। दुर्भाग्य यह है कि अखबारों में भृत्य की तो पोस्ट होती है जबकि कार्टूनिस्ट की नहीं।
अमरावती से आये वरिष्ठ कार्टूनिस्ट मंजुल ने कहा कि कार्टून ब्लैक एंड व्हाइट की तरह होते हैं, जबकि खबरों का कलर ग्रे होता है। उन्होंने आगे कहा कार्टूनिस्ट के चित्र बड़े नुकीले होते है और उसमें बहुत अधिक कटाक्ष होता है। कार्टूनिस्ट बहुत अधिक व्यस्त होते है और वे आसानी से मिल नही पाते है।
मंजुल ने राजनीतिक चुटीले के साथ छोटी बड़ी व्यंग्य कविताएँ भी सुनाई, जिस पर खूब तालिया बजी। प्रारम्भ में हास्य कवि रोहित झन्नाट ने हास्य व्यंग्य की कविताओं के माध्यम से इंदौर शहर का दिलचस्प परिचय दिया।
अतिथि स्वागत स्टेट प्रेस क्लब म. प्र. के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल,सुंदर गुर्जर, हेमंत मालवीय, कुमार और गिरीश मालवीय ने किया। अतिथि परिचय अभिषेक सिसोदिया सिसोदिया ने दिया। अतिथियों को प्रतीक चिन्ह प्रदीप सिंह राव, डॉ. रजनी भंडारी, रमेश बेंजामिन, सोनाली यादव, गोपाल जोशी ने प्रदान किये। कार्यक्रम का संचालन इस्माइल लहरी ने किया। आभार वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने माना।