दैनिक आगाज इंडिया 30 मई 2025 इंदौर की धरती ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि जब संकल्प दृढ़ हो, तो परंपराएं भी नए आयाम गढ़ती हैं। महिला पहलवान नीलिमा बोरासी ने अपने जुनून, संघर्ष और मेहनत से कुश्ती के अखाड़े में ऐसा इतिहास रचा, जो केवल खेल की जीत नहीं, बल्कि समाज की सोच में बदलाव की गूंज भी है।
देवी अहिल्याबाई होल्कर की प्रेरणा बनी आधारशिला
नीलिमा का यह सफर यूं ही नहीं शुरू हुआ। इंदौर की प्राचीन कुश्ती परंपरा, जो देवी अहिल्याबाई होल्कर के समय से चली आ रही है, उनकी प्रेरणा बनी। देवी अहिल्याबाई होल्कर न सिर्फ एक आदर्श शासिका थीं, बल्कि उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण और पारंपरिक खेलों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई। उन्हीं के समय में इंदौर के राजवाड़ा में भव्य दंगलों की शुरुआत हुई थी, जो आज भी जीवंत हैं।
संघर्षों से लेकर सम्मान तक का सफर
नीलिमा बताती हैं कि जब उन्होंने कुश्ती शुरू की थी, तब समाज का रवैया बेहद नकारात्मक था। “लड़की होकर कुश्ती? शादी कैसे होगी? लोग क्या कहेंगे?” जैसे सवालों और तानों ने उनके परिवार को भी झकझोरा। यहां तक कि मोहल्ले और रिश्तेदारों द्वारा उनके माता-पिता को अपमानित भी किया गया। लेकिन नीलिमा ने हार नहीं मानी। उन्होंने सात-आठ राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया, मध्यप्रदेश शासन के खेल एवं युवा कल्याण विभाग से डिप्लोमा प्राप्त किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। सीनियर नेशनल में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद उन्होंने अपने प्रदर्शन से आलोचकों को जवाब दिया।
अब वही समाज कहता है – ‘यह तो मेरी बेटी है’
नीलिमा आज न सिर्फ एक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं, बल्कि कोच भी बन चुकी हैं। वह अपनी सेवाएं राज्य शासन के खेल एवं युवक कल्याण विभाग को दे रही हैं । उनकी उपलब्धियों को देख आज वही लोग गर्व से कहते हैं – “यह तो मेरी बेटी है!” जो कभी ताने देते थे, आज गर्व से परिचय कराते हैं।
महिलाओं के लिए बनी रोल मॉडल
नीलिमा का कहना है कि पहले पहलवान बनने वाली लड़कियों को अखाड़े में जगह नहीं मिलती थी। लेकिन जब इंदौर की सांसद रही पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन जैसी नेताओं ने उनके प्रयासों को पहचाना, तो इंदौर के महिला कुश्ती अखाड़े को और भी सुविधाएं दी गईं, जैसे छत डालवाना, जरूरी साधन-सुविधाएं मुहैया कराना। अब हालात यह हैं कि कई परिवार अपनी बेटियों को शुरू से ही कुश्ती में भेजने लगे हैं, यह सोचकर कि वे भी नीलिमा जैसी बनेंगी।
इंदौर की परंपरा को नई दिशा
इंदौर, जो अब एक आधुनिक शहर के रूप में उभर चुका है, वहां पारंपरिक खेलों की इस तरह की पुनः स्थापना और उसमें महिलाओं की सक्रिय भागीदारी किसी क्रांति से कम नहीं। इसका श्रेय न केवल नीलिमा बोरासी को जाता है, बल्कि उस ऐतिहासिक परंपरा को भी, जिसकी नींव देवी अहिल्याबाई होल्कर ने रखी थी। नीलिमा बोरासी केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक संदेश हैं कि जब इरादे मजबूत हों और परंपराओं को सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए, तो महिलाएं न केवल कुश्ती जैसे कठिन खेल में पहचान बनाती हैं, बल्कि समाज की सोच को भी कुश्ती में पटक देती हैं।
(देवी अहिल्या 300वीं जयंती- विशेष)