दैनिक आगाज इंडिया 12 नवंबर 2024 इंदौर, पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी देवी अपने पूर्वजन्म में वृंदा नामक एक स्त्री थीं, जो दैत्यराज जलंधर की पत्नी थीं। वृंदा एक पतिव्रता नारी थीं और उनके पतिव्रता धर्म के कारण जलंधर को अपार शक्ति प्राप्त थी। वृंदा भगवान विष्णु की भी परम भक्त थीं। वृंदा की भक्ति इतनी सशक्त थी कि उसकी पतिव्रता शक्ति ने जलंधर को अजेय बना दिया था। इसी शक्ति के कारण देवता भी जलंधर को युद्ध में पराजित नहीं कर पा रहे थे । जलंधर ने कई बार देवताओं को परास्त किया और उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जलंधर का वध करने का उपाय निकाला। उन्होंने जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। भगवान विष्णु ने ऐसा छल किया कि वृंदा को यह प्रतीत हुआ कि उनके पति जलंधर वापस आ गए हैं। । इसके कारण जलंधर को युद्ध में पराजित कर दिया गया और उसकी मृत्यु हो गई।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित और दुखी हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार उन्होंने छल से उनके पति का वध करवाया है, उसी प्रकार वे भी अपने वास्तविक रूप को त्यागकर शालिग्राम पत्थर के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। वृंदा के इस श्राप के कारण भगवान विष्णु शालिग्राम बन गए। इस घटना से अत्यंत दुखित होकर वृंदा ने स्वयं को सती कर लिया, अर्थात् अपने शरीर का त्याग कर दिया। वृंदा के शरीर से ही तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। इस प्रकार वृंदा का पुनर्जन्म तुलसी के रूप में हुआ।
वृंदा के इस त्याग और उनके प्रेम को देखते हुए भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे सदा उनके साथ रहेंगी। भगवान विष्णु ने कहा कि उनका नाम अमर रहेगा और हर पूजा में उनका विशेष स्थान होगा। उन्होंने यह भी वचन दिया कि तुलसी के बिना उनकी पूजा अपूर्ण मानी जाएगी। इसी आशीर्वाद के परिणामस्वरूप तुलसी का पौधा हमारे धर्म में अत्यधिक पवित्र माना गया है। तुलसी के बिना किसी भी पूजा को सम्पूर्ण नहीं माना जाता है, विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा में।
तभी से तुलसी का विवाह शालिग्राम भगवान के साथ करने की परंपरा आरंभ हुई। हर वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। यह विवाह एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें तुलसी को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है और शालिग्राम को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है। वैदिक मंत्रों और विवाह की अन्य विधियों के साथ इस विवाह को सम्पन्न किया जाता है। इस अनुष्ठान को करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।